रिमझिम बारिश ने बढ़ाई अन्नदाता की चिंता

रिमझिम बारिश ने बढ़ाई अन्नदाता की चिंता
कायमगंज/ फर्रुखाबाद 9 फरवरी 2022
2 दिन तक सुहावना मौसम रहने के बाद आज सुबह से ही सूर्य ने बदली में मुंह छुपा लिया। देर रात से ही गरज चमक के साथ बादलों से पानी की बौछार होने लगी। पहले दौर में कुछ देर तक जोरदार बूंदाबांदी हुई। इसके बाद तेज गर्जना के साथ ही आसमान से गिर रही पानी की बूंदे काफी देर के लिए थम गई। लेकिन जैसे ही आधी रात बीतने को हुई। एक बार फिर बड़ी तेजी के साथ आसमान से रह- रह कर बरसात शुरू हो गई। यह क्रम काफी देर तक चलता रहा। सवेरा होने तक छुटपुट बरसा जारी रही। इसके उपरांत बूंदाबांदी तो रुक गई ।लेकिन आसमान में घने काले बादल छाए रहे। सूर्य निकलने की उम्मीद लगाए लोग बादलों की गंभीर स्थित के कारण निराश होते दिखाई दिए। एक या दो दिन तक अच्छा मौसम होने के बाद फिर अचानक रह- रह कर हो रही वर्षा के कारण खेतों में खड़ी लहलाती पीले फूलों वाली सरसों ,आलू, तंबाकू जैसी फसलों को बेमौसम बरसात के कारण काफी नुकसान हो रहा है। किसान बताते हैं कि आसमानी पानी से सरसों में कंधार जिसे सामान्य भाषा में नए कल्ले निकलना कहते हैं। बहुत तेजी से बहुतायत में निकल आए हैं। जिनकी वजह से सरसों की पहले से लदी फलियां भी खराब हो रही हैं। यह एक प्रकार का ऐसा रोग है। जिस की रोकथाम का भी कोई उपाय नहीं है। जिसके कारण सरसों की पैदावार तो कम होगी। उसकी गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। वही आलू की अधिकांश खेती झुलसा जैसे रोग से कुप्रभावित होकर इस तरह नष्ट हुई है । इसे देखकर ऐसा लगता है कि मानो हरे भरे पौधे आलू के किसी ने गला या जला दिए हो। इस परिस्थिति में आलू की पैदावार भी कम होने का पूरी तरह अनुमान दिखाई दे रहा है। वही तंबाकू की फसल भी बेमौसम वर्षा के कारण खराब हो रही है। इसी तरह अन्य फसलें भी अच्छी तरह ग्रोथ नहीं कर पा रही हैं। मेहनतकश किसान अपनी फसलों को बोने से पहले उसकी लागत के लिए सरकारी अर्ध सरकारी या फिर प्राइवेट किसी फर्म या संपन्न व्यक्ति से कर्ज लेकर बुवाई की व्यवस्था करता है। जब पौधे जमकर तैयार होते हैं फिर उनकी सिंचाई कीटनाशक दवाइयां तथा खाद आदि साथ ही महंगा डीजल खरीद कर सिंचाई आदि की व्यवस्था के लिए भी कर्ज लेने के लिए मजबूर होता है। क्योंकि उसकी फसल का लाभकारी मूल्य न मिलने के कारण कृषि कार्य मुनाफे का सौदा ही नहीं रहा है। जैसे तैसे मेहनतकश अन्नदाता अपने परिवार का भरण पोषण रात दिन मेहनत करके ही करने का प्रयास तो करता है किंतु फिर भी शिक्षा दवाई एवं अन्य आवश्यक कार्यों के लिए उसे हमेशा तंग आर्थिक हालत से ही गुजारना पड़ता है। एक के बाद दूसरी फसल पर बेचारा उम्मीद तो लगाता है। लेकिन कभी बाजार का भाव तो कभी मौसम की मार उसे अच्छी हालत में पहुंचने से रोकती ही रहती है। और इस तरह मृगतृष्णा की तरह बेचारा अन्नदाता अपने भाग्य के भरोसे गरीबी हाल में पीढ़ी दर पीढ़ी जीने को विवश होता रहता है। इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि भारत कृषि प्रधान देश होने के बावजूद भी अपने इन मेहनत कश अन्नदाताओं के जीवन स्तर में अपेक्षित सुधार लाने के लिए आज तक कोई प्रभावी एवं उपयुक्त कृषि नीति लागू नहीं कर सका। तो फिर ऐसे में मौसम की बेरुखी या अन्य प्राकृतिक आपदाएं तो किसान के लिए हमेशा चिंता का विषय बनी ही रहेगी।

ब्योरो रिपोर्ट

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