World new साभार : –
दिल्ली : – ( द एंड टाइम्स न्यूज)
सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने सोमवार को अरब-इस्लामिक देशों के रियाद में सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा कि उनका देश एक बार फिर इसराइल की ओर से फ़लस्तीनियों के जनसंहार की निंदा करता है. इसराइल को इसे तुरंत रोकना चाहिए।
उन्होंने सम्मेलन में हिस्सा ले रहे नेताओं की इस मांग का समर्थन किया कि इसराइल वेस्ट बैंक और गज़ा से अपने सैनिकों को पूरी तरह हटा ले.क्राउन प्रिंस सलमान ने फ़लस्तीन को एक स्वतंत्र देश का दर्जा देने की मांग करते हुए कहा, ”हमने दो राष्ट्रों के सिद्धांत को समर्थन देने के लिए एक अंतरारष्ट्रीय अभियान शुरू किया है. उन्होंने कहा, ”फ़लस्तीन के ख़िलाफ़ निरंतर अपराध,अल-अक़्सा मस्जिद की पवित्रता के उल्लंघन और सभी फ़लस्तीनी इलाक़ों में फ़लस्तीनी अथॉरिटी की अहम भूमिका को ख़त्म करने की इसराइल की कार्रवाई फलस्तीनियों के सभी वैध अधिकार पाने की कोशिशों को कमज़ोर कर देगी.”मोहम्मद बिन सलमान ने ग़ज़ा में फ़लस्तीनियों के लिए काम करने वाली यूएन की एजेंसी यूनाइटेड नेशन्स रिलीफ़ एंड वर्क्स फ़ॉर फ़लस्तीन यानी यूएनआरडब्लूए पर प्रतिबंध लगाने की भी निंदा की है.पिछले दिनों इसराइल ने इस एजेंसी पर ये कहकर प्रतिबंध लगा दिया था इसमें शामिल लोग हमास के लड़ाकों की मदद करते रहे हैं.हमास के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़ ग़ज़ा में इसराइली हमलों में अब तक 43 हजार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.
प्रिंस सलमान ने ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़श्कियान से हाल में बात की है सऊदी प्रिंस ने सम्मेलन में ईरान का भी मुद्दा उठाया और कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसराइल को ईरान की संप्रभुता का सम्मान करने के लिए बाध्य करे.उन्होंने कहा कि सऊदी अरब ईरान पर इसराइल के किसी भी हमले की कोशिश को ख़ारिज करता है ।. सम्मेलन में लेबनान, ईरानी, इराक़ और सीरिया की संप्रभुता के उल्लंघन की निंदा की गई.इसमें इसराइल-ग़ज़ा संघर्ष को ख़त्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से संयुक्त राष्ट्र के समाधानों और अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के फ़ैसलों को लागू करवाने की अपील की गई है.सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के एक दिन बाद ही उनके साथ फ़ोन पर बात की थी. साथ ही उन्होंंने 10 नवंबर को ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़श्कियान से बात की थी.उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस फौरी संघर्ष और इसराइल की आक्रामकता को ख़त्म करने में नाकाम रहा है।
सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फ़ैसल ने पिछले महीने कहा था कि जब तक फ़लस्तीनियों के अधिकार बहाल नहीं हो जाते, तब तक इसराइल से रिश्ते सामान्य करने पर बात नहीं हो सकती।
क्या फ़लस्तीन पर प्रिंस सलमान का रुख़ बदलेगा?
मध्य-पूर्व के मीडिया आउटलेट ‘अल मॉनिटर’ से बात करते हुए सऊदी अरब के राजनीतिक टिप्पणीकार और सऊदी सरकार के क़रीबी माने जाने वाली राजनीतिक टिप्पणीकार अली शिहाबी ने कहा, ”उन्हें नहीं लगता कि ट्रंप के जनवरी 2025 में सत्ता संभालने के बाद फ़लस्तीन के मुद्दे पर सऊदी अरब का रवैया बदलेगा.”उन्होंने कहा, मुझे नहीं लगता कि इसराइल और गज़ा बीच युद्धविराम की वार्ता से क़तर के अलग हो जाने के बाद सऊदी अरब इस मामले में मध्यस्थता करना चाहेगा.हालांकि अरब-इस्लामी देशों का ये सम्मेलन सऊदी अरब की ओर से शांति बहाल की दूसरी कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.इससे पहल यूरोपियन यूनियन के मध्य-पूर्व शांति प्रक्रिया के विशेष प्रतिनिधि स्वेन कूपमैन इस साल 20 अक्तूबर को सऊदी अरब पहुंचे थे.वो इस मामले में ईयू की पहल की कोशिश की जानकारी देने आए थे. उन्होंने कहा था कि इस पर बातचीत आगे बढ़ाने के लिए यूरोपियन यूनियन नवंबर में ब्रसेल्स में बैठक करेगा.अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के ठीक बाद अरब-इस्लामिक देशों के संगठनों की बैठक में फ़लीस्तीन का मुद्दा ज़ोर-शोर से उठने के बाद ये कयास लगाया जा रहा है कि वो नए अमेरिकी राष्ट्रपति को इसराइल पर दबाव बनाने के लिए मना सकेंगे.सऊदी अरब में ट्रंप को जो बाइडन की तुलना में ज़्यादा उदार माना जाता है. हालांकि मध्य-पूर्व को लेकर ट्रंप का ट्रैक रिकार्ड मिला-जुला रहा है.उन्होंने यरुशलम को इसराइल की राजधानी के तौर पर मान्यता दे दी थी और अमेरिका के दूतावास को तेल अवीव से हटा कर यहां स्थानांतरित कर दिया था. साथ ही उन्होंने गोलान हाइट्स पर भी इसराइल के कब्ज़े को मान्यता दे दी थी. इससे इस्लामिक देश नाराज़ हो गए थे.जबकि यरुशलम फ़लस्तीनियों के धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन का केंद्र है.हालांकि अपनी निगरानी में ट्रंप ने 2020 में अब्राहम एकॉर्ड भी कराया था.इसके तहत संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मोरक्को ने इसराइल से पूर्ण राजनयिक रिश्ते बहाल कर लिए थे.अरब-इस्लामिक देशों के इस सम्मेलन पर टिप्पणी करते हुए एक सऊदी अख़बार की हेडलाइन थी- उम्मीदों का एक नया युग, ट्रंप की वापसी और स्थिरता की संभावना. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान ने ज़रूरी सरकारी कामकाज़ के दबाव की वजह से सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया -लेकिन देश के प्रथम उप राष्ट्रपति महम्मद रज़ा आरिफ ने कहा कि इसराइल ने हमास और हिज़्बुल्लाह नेताओं की हत्या की है. उन्होंने कहा कि ये इसराइल का ‘संगठित आतंकवाद’ है.मलयेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने इसराइल की आलोचना करते हुए कहा,” इसराइल अब सभ्य देशों के समूह के दायरे में नहीं है. उसकी क्रूरता को देखते हुए अब ये फ़ैसला लेने का समय आ गया है कि न सिर्फ़ मध्य-पूर्व बल्कि पूरी वैश्विक व्यवस्था की सुरक्षा के लिए निर्णायक क़दम उठाए जाएं ।अरब लीग के सेक्रेट्री जनरल ने अहमद अबुल घेईत ने इसराइल की आलोचना की है. उन्होंने कहा,” फ़लस्तीन के लोगों पर जो गुजर रही है, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. इसराइल ने यहां के लोगों के ख़िलाफ़ जो कार्रवाई की है, उसने शांति हासिल करने की कोशिशों को काफ़ी कमज़ोर कर दिया है. जब यहाँ पूरी तरह शांति हो जाएगी तभी हम यहां के लोगों को न्याय दिला पाएंगे.”
लेबनान के प्रधानमंत्री नजीब मिकाती ने कहा कि उनका देश ”अभूतपूर्व” संकट से गुजर रहा है. इसने लेबनान का अस्तित्व को ख़तरे में डाल दिया है. इसराइल लेबनान में हिज़्बुल्लाह के ठिकानों पर लगातार हमले कर रहा है. ॥
पाकिस्तान के प्रधानमंंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने कहा कि इसराइल बिना किसी डर के बेकसूर फ़लस्तीनियों का जनसंहार जारी रखे हुआ है. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा,”संयुक्त अरब इस्लामिक शिखर समेलन में मैंने इसराइल की कार्रवाइयों की कड़ी निंदा की है और फ़लस्तीन लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करने की पाकिस्तान के सैद्धांतिक रुख को दोहराया.”मैंने तत्काल युद्धविराम, इसराइल को हथियारों की सप्लाई बंद करने और लेबनान में इसराइली हमलों से प्रभावित लोगों की मदद की मुस्लिम उम्माह की मांग को भी दोहराया. यह शिखर सम्मेलन फ़लीस्तीनी भाइयों और बहनों के इसराइल के कब्जे के ख़िलाफ़ संघर्ष की सामूहिक संकल्प को भी दर्शाता है.”।
ब्यूरो रिपोर्ट
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