Farrukhabad news –वनरोज ,आवारा गोवंश तथा जंगली सुअरों से अन्नदाता खासा परेशान

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Farrukhabad news-खेतों में खड़ी फसलों की रात दिन जाग कर करनी पड़ रही है रखवाली – फिर भी मौका पाते ही यह जानवर किसान की मेहनत को लगा देते हैं पलीता
फर्रुखाबाद ।
महंगाई की मार से किसान ही नहीं अपितु अन्य लोग भी काफी परेशानी महसूस कर रहे हैं । ऐसे में मेहनतकश किसान अपनी फसलों को उगाने के लिए निजी साधन से या फिर सरकारी या अर्ध सरकारी वित्तीय संस्थाओं से अथवा साहूकारों से कर्ज लेकर किसी तरह अपने परिवार की जीविका के लिए कड़ी मेहनत के साथ ही कर्जदार भी हो जाता है । और ऐसा ही हो भी रहा है । क्योंकि किसी भी फसल की उपज के लिए लगाई गई लागत की कीमत – बिक्री के बाद प्राप्त मूल्य से अनुपातिक दृष्टिकोण से कम ही होती है । ऊपर से प्राकृतिक आपदाओं की मार भी किसान को ही तबाह कर देती है । फिर भी अन्नदाता लोगों का पेट भरने के लिए खून पसीना बहाकर जमीन का सीना चीरकर किसी भी मौसम से बेपरवाह रहते हुए अनाज सब्जी दलहनी तथा तिलहनी फसलों को उगता ही है । लेकिन इस समय एक भीषण त्रासदी किसानों के लिए परेशानी का कारण बनती जा रही है। किसानों का कहना है कि गौशालाओं की औपचारिकता केवल कागजों तक सिमट कर रह गई है । आवारा तथा निराश्रित गाय और सांडों के झुंड खेतों बगीचों सभी जगह घूम रहे हैं । इसी के साथ लगभग हर एक जगह नील गायों का भी प्रकोप काफी बढ़ गया है । इन दोनों के अलावा जंगली सूअर भी धाबा बोलकर खेतों में खड़ी या वोइ जा रही मूंगफली मक्का जैसी फसलों के अलावा ईख आलू सब्जीआदि को रात के अंधेरे में मिट्टी हटाकर या पौधों को चबा कर तहस-नहस कर देते हैं ।
वहीं नीलगाय और आवारा गोवंश
भी इन फसलों के अलावा गेहूं जौं
चना मटर आदि फसलों को चर जाते हैं । पॉलिथीन तानकर या फूस की झोपड़ी डालकर मेहनतकश अन्नदाता किसान अपने खेतों की रात दिन चौकसी कर रहा है । लेकिन फिर भी आखिर कहां तक निगरानी की जाए । भोजन स्नान या फिर अन्य दैनिक आवश्यक क्रियाओं के लिए तो जाना ही पड़ता है । ऐसे में जब भी इन आवारा जानवरों को मौका मिल जाता है । बस उसी समय में चाहे दिन हो या रात का अंधेरा खेतों में लहलती किसान की भविष्य की उम्मीद उसकी फसलों को बर्बाद कर देते हैं, और जब अपनी बर्बाद फसल की तबाही का मंजर किसान निहारता है तो वह एक बुत की तरह अफसोस करता हुआ अपने भाग्य के साथ ही शासन और प्रशासन की नीतियों को भी अपने शब्दों में जिस तरह व्यक्त करता है । उसे सुनकर हर व्यक्ति किसान की पीड़ा समझ कर शासन से ऐसी व्यवस्था करने की अपेक्षा करता है । जिससे कि अन्नदाता की मेहनत बेकार न जाए । लेकिन निकट भविष्य में इस तरह की ठोस व्यवस्था कब होगी -कैसे होगी ?कुछ भी कहना फिलहाल संभव नहीं है l

ब्यूरो चीफ जयपाल सिंह यादव दानिश खान

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